विकास हो न सकेगा
पैसों से मौज करते रह जाएंगे,
स्वच्छता अभियान करा लो जितने
खुले में शौच करते रह जाएंगे,
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साठ बरस बीत गए, क्रांति कि सिर्फ़ धूल उड़ी
विकास की राह पर चलना था जिनको,
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मैं वो सुलगती आग हूँ,
आवाम की रगों मे जो बहता है,
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मैं वो सुलगती आग हूँ,
आवाम की रगों मे जो बहता है,
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कभी ऐसा लगता है अटूट हूँ किसी परिंदे की तरह उड़ु,
और कभी कभी डर की राख आँखों में चुभ जाती है,
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