Freedom Freedom Poem by GULSHAN SAHU

Freedom Freedom

साठ बरस बीत गए, क्रांति कि सिर्फ़ धूल उड़ी

विकास की राह पर चलना था जिनको,

राहें उनकी नफ़रत की ओर मुड़ी

ढूँढू जहाँ में शांति मैं, सिर्फ़ दंगे फ़साद हैं

ना तब देश आज़ाद था, ना अब देश आज़ाद है।।



ताक़त के लालच में, नेता सारे बिक गए

ज़हन में मासूमियत थी जिनके, तलवार चलाना सीख गए

ख़ुशियों के कारोबार में, फैल रहा विषाद है

ना तब देश आज़ाद था, ना अब देश आज़ाद है।।



जिन वादियों पे ऊपर वाले ने की नक़्क़ाशी

बर्फ़ पड़नी थी जहाँ, नफ़रत के ओले पड़ रहे हैं

आशा थी जीने के हक़ की

पर भाई ही भाई से लड़ रहे हैं

नीव हिला दी इंसानियत की, ये कैसा जिहाद है

ना तब देश आज़ाद था, ना अब देश आज़ाद है।।

-गुलशन साहू

Tuesday, August 23, 2016
Topic(s) of this poem: patriotism
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