Poet Poem by GULSHAN SAHU

Poet

Rating: 5.0

अनायास ही लोग पूछते हैं,

क्या दिन के चार शब्द ही बोलता है,

उसका काम जवाब देना नहीं,

वो तो अंतरमन की पीड़ा को टटोलता है।

महफिल तो अमीरों के मौज हैं,

वो बस सूने कोनों में दिखता है,

कलम मे उसके स्याही हो,

वो कागज़ की कीमत लिखता है।।



मन में जो बातें चुभती हैं,

पन्नें ही उसका निशाना है,

ये बुढ़ी धरती माँ है,

इसका दुखड़ा उसका फसाना है।

पर इसके शब्दों का मोल कहाँ,

ये तो बस कौड़ियों में बिकता है,

कलम मे उसके स्याही हो,

वो कागज़ की कीमत लिखता है।।



बातें उसकी समय से परे हैं,

समय का दर्द कौन सहलाना चाहेगा,

किसमे इतनी हिम्मत जो,

भरे बाजा़र पागल कहलाना चाहेगा।

अकेला ही छोड़ दो उसे,

अकेले ही दुनियादारी सिखता है,

कलम मे उसके स्याही हो,

वो कागज़ की कीमत लिखता है।।

Saturday, August 20, 2016
Topic(s) of this poem: poets
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 20 August 2016

आपके शब्दों में उस कवि की दास्तान बयान की गयी है जो अपने आसपास के जीवन को देखता है और बगैर किसी लालच के जन जन की पीड़ा को कलमबद्ध करता है. अच्छी कविता है. धन्यवाद. ये बुढ़ी धरती माँ है, इसका दुखड़ा उसका फसाना है।

1 0 Reply
Gulshan Sahu 30 October 2016

bahut bahut dhanyawaad.

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