मानवता का गला घोंट कर,
कायरो ने किया है वार।
हे भारत के वीर सपूतों,
निकालो अपनी तलवार।
दिए मौके मित्रता की,
पर मारा खंजर बारम्बार।
लहूलुहान है ये धरती,
कर रही तुमसे बस यही पुकार।
गूंज उठे ये अम्बर सारा।
गूंज उठे पूरा संसार।
अब विनती न हो,
गिनती ना हो
ऐसा करो तुम नरसंहार।
गीदड़ों की झुंड में जाकर,
भरो शेरो की तुम हुंकार।
हे भारत के वीर सपूतों,
निकालो अपनी तलवार।
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem