आज दहसत का आलम,
हर शहर हर जर्रे में है।
अब हर माँ, बहन, बेटी की,
आबरू खतरे में है।
आंखों में दर्द आंसू लिए,
शाम ढल जाती है।
फिर अगले ही दिन,
वही खबर आ जाती है।
हैबानियत है हर हद को,
पार कर रहा।
8 साल की बच्चियों के भी,
शिकार कर रहा।
चीख़ों की गूंज उसकी,
हर कतरे में है।
अब हर माँ, बहन, बेटी की,
आबरू खतरे में है।
कही पे कैंडल मार्च,
तो कही सड़के जलती है।
इसपे तो अच्छी खासी,
सियासतें भी चलती है।
चंद पैसो में कुछके,
ईमान यहा बिकते है।
कोई झूठी गवाही,
तो कोई गलत रिपोर्ट लिखते है।
कुछ ही दिनों में,
धैर्य टूट जाता है।
बिना सबूत के,
रेपिस्ट भी छूट जाता है।
दरिंदगी की जीत,
मासूमियत हार जाती है।
बस इसी लिए ये कहानी,
हर रोज दुहराती है।
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