पिता Poem by Shashi Shekher Singh

पिता

माँ का आँचल बड़ा,
तो पिता का कन्धा बड़ा है,
ज़िन्दगी की उलझनों का बोझ,
उसी कंधो पे परा है।

माँ की ममता का सबको ज्ञान है,
पिता की क्षमता का हमें भी गुमान है,

भूखी खुद रह के हमेशा,
माँ ही खिलाती है,
पिता के रहते कभी भी,
ऐसी नौबत ही नहीं आती है,

हमारी ज़िद हमेसा,
जिनके पास जीतता है,
जिनका हर पल हमारे,
ख़ुशी के लिए बीतता है।

जिनके पसीने का हर कतरा,
हमें सुख दिलाता है,
बिना जताये बेइंतहा प्यार करने बाला,
पिता कहलाता है,

शशि शेखर

पिता
Tuesday, February 21, 2017
Topic(s) of this poem: baby,father,happiness,hero,love,poem
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Shashi Shekher Singh

Shashi Shekher Singh

Lakhisarai, Bihar
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