एक भोली माँ Poem by Shashi Shekher Singh

एक भोली माँ

माँ का नटखट गोपाला,
बड़े नाजो से उसको था पाला,
फुदकता, खेलता इधर-उधर,
ढूंढती परेशान हो माँ ना जाने किधर।

नखरों को हमेशा हस कर झेलती थी,
थके होने पे भी साथ खेलती थी,
जिंदगी का उसका हर दिन खाश था,
क्योंकि बेटा उसका, उसके ही पास था।

एक सुंदर बहु घर आई,
चंद दिनों की खुशियां थी लायी,
घर मे थी अपना हुकुम चलाती,
पति से सारी बात मानवती।
माँ को उसने बड़ा रुलाया,
कुछ दिनों में ही, बृद्धाश्रम पहुँचवाया।

आंखे तरस गयी,
अब बेटे के दीदार को।
याद कर बृद्धाश्रम में रोती,
अपने बेटे के प्यार को।
वो बूढ़ी आंखे राह देखती,
अब बस इसी इंतजार में।
बेटा हमारा घर लेके जाएगा,
बस अगले ही त्योहार में।

शशि शेखर

Monday, April 10, 2017
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Ramesh guggad 03 November 2018

i miss you mom

0 0 Reply
Kumarmani Mahakul 10 April 2017

याद कर बृद्धाश्रम में रोती, अपने बेटे के प्यार को।....intensive depiction. Heartfelt poem. Thanks for sharing....10

3 0 Reply

Thanks sir

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Shashi Shekher Singh

Shashi Shekher Singh

Lakhisarai, Bihar
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