एक आवाज़ Poem by Shashi Shekher Singh

एक आवाज़

आस-पास कोई चीख रहा था,
पर वो न दिख रहा था।
इस बात पे यकीं न हो पाया,
इक कटे पेड़ को सामने पाया।
खुदा ने मानो मुझे चुना था,
उस पेड़ की आवाज़,
सिर्फ मैंने सुना था।

दर्द से भरा हुआ,
उसकी पुकार थी।
हमसब से उसकी,
बस ये गुहार थी।

क्यों अर्थियो पे हमारे,
तुमसब घर बसा रहे हो,
कही मैदान कही सड़क,
तो कही कारखाने बना रहे हो।
चंद खुशियों के बाद,
वो समय भी आएगा,
मुझ बिन जीना जब,
दुर्लभ होता जायेगा।

आँखों से मेरे,
अश्रु धरा बह रहा था,
बिना कुछ कहे,
वो पेड़ क्या कुछ सह रहा था।
अपनी बर्बादी का हम,
क्यों कारण बने,
मनुष्य होके जानवर का हम,
क्यों उदहारण बने।

अपने भविष्य में तभी,
खुशियां सजा पायंगे,
जब अपने दोस्तों,
पेड़ो को हम बचा पाएंगे।

Save Tree, Save Earth, Save Life
शशि शेखर सिंह

एक आवाज़
Sunday, March 5, 2017
Topic(s) of this poem: love,tree
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Shashi Shekher Singh

Shashi Shekher Singh

Lakhisarai, Bihar
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