कभी-कभी रोने को दिल करता है! Poem by sunil shukla

कभी-कभी रोने को दिल करता है!

कभी-कभी रोने को दिल करता है!
आंसू नहीं निकलते, लेकिन कलेज़ा ज़लता है! !

हालात से मज़बूर है, जिसपर बस नहीं चलता है,
जब लोग हाल-चाल पूँछते हैं, कुछ कहने को नहीं बनता है!
बस कलेज़ा ज़लता है…

मौका बेबसी का है, और हालात से डर लगता है,
दिखाने को हॅसते हैं, लेकिन कलेज़ा ज़लता है!

कभी-कभी रोने को दिल करता है,
आंसू नहीं निकलते, लेकिन कलेज़ा ज़लता है! !

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