उनसा कोई Poem by Shashi Shekher Singh

उनसा कोई

ढूंढो कोई उनसा कहीं,
गैर होकर भी जो अपना सा हो,
जिनकी हँसी दिल मे बसे,
हकीकत भी मानो,
एक सपना सा हो।
ज़िन्दगी से रंगीन रंगों को संजो कर,
ख्वाबों को पन्नो पे उतारे जो,
इन चित्रों को रख कर आंखों में,
चश्मे के अंदर से निहारे जो।
समेट कर घटाओ को बालों में,
खुले आसमान में लहराए जो।
तिरछी नजरो से हमे देख कर
बस एक बार मुस्कुराए जो।
समझ से अपनी निश्चित करे,
है क्या गलत औरक्या सही।
गैर होकर अपना से हो,
ढूंढो कोई उनसा कही।

उनसा कोई
Wednesday, July 17, 2019
Topic(s) of this poem: friendship
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Shashi Shekher Singh

Shashi Shekher Singh

Lakhisarai, Bihar
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