अपने और पराये Poem by Shashi Shekher Singh

अपने और पराये

अपनो का दामन छोड़,
गैरों के जो गले मिलते है।
क्या रेगिस्तान में देखा,
कभी कमल खिलते है।
एक कड़वा है,
तो दूजा मीठा जहर है।
एक प्यार का गहरा सागर,
तो एक,
सूखता नहर है।
एक सूरज सा तेज रोशन,
तो वो प्यारी सी चांदनी है।
एक जीवन का रसभरा उपन्यास,
तो दूजा,
चंद दिनों की छोटी कहानी है।
अपने साथ है तो,
कांटे भी फूल से लगते है।
दूर हो अपने तो,
चंदन भी,
धूल से लगते है।
सहारा गैर का,
बस मतलबों तक ही मिलते है।
क्या रेगिस्तान में देखा,
कभी कमल खिलते है।

Monday, February 4, 2019
Topic(s) of this poem: family day,family life
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Shashi Shekher Singh

Shashi Shekher Singh

Lakhisarai, Bihar
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