अपनो का दामन छोड़,
गैरों के जो गले मिलते है।
क्या रेगिस्तान में देखा,
कभी कमल खिलते है।
एक कड़वा है,
तो दूजा मीठा जहर है।
एक प्यार का गहरा सागर,
तो एक,
सूखता नहर है।
एक सूरज सा तेज रोशन,
तो वो प्यारी सी चांदनी है।
एक जीवन का रसभरा उपन्यास,
तो दूजा,
चंद दिनों की छोटी कहानी है।
अपने साथ है तो,
कांटे भी फूल से लगते है।
दूर हो अपने तो,
चंदन भी,
धूल से लगते है।
सहारा गैर का,
बस मतलबों तक ही मिलते है।
क्या रेगिस्तान में देखा,
कभी कमल खिलते है।
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