परिंदा और चाँद Poem by Shashi Shekher Singh

परिंदा और चाँद

परिंदे की ख्वाहिशहै,
खूबसूरत चाँद को पाने की,
फिकर न है उसको
अब इस जमाने की,
उड़ता रहा प्यार की,
ऊंचाइयों में इस कदर,
भुला वो रास्ता
घर लौट आने की।
परिंदे की ख्वाहिश है,
खूबसूरत चाँद को पाने की।
उस चाँद का बस,
पूर्णिमा में दीदार होता है।
फिर महीनोंपल पल का
इंतज़ार होता है।
मोहब्बत है इस कदर,
परिंदे को चाँद से।
की बन गयी वजह,
वो उसके मुस्कुराने की।
परिंदे की ख्वाहिश है,
उस खूबसूरत चाँद को पाने की।
चाँद को खोट दिखता,
परिंदे के प्यार में।
पर वो उड़ रहा आज भी,
बस एक हाँ के इंतजार में।
क्युकी, रंगहीन चित्रो में चाँद,
वजह है रंग लाने की।
परिंदे की ख्वाहिश हैं,
उस खूबसूरत चाँद को पाने की।
जताता अपना प्यार,
पल पल इस कदर,
मोम का चाँद नही,
मानो है दिल पत्थर।
प्यार हो सच्चा,
तो जरूरत क्या जताने की।
परिंदे की ख्वाहिश है,
उस खूबसूरत चाँद को पाने की।

शशि शेखर

परिंदा और चाँद
Monday, December 31, 2018
Topic(s) of this poem: love
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Shashi Shekher Singh

Shashi Shekher Singh

Lakhisarai, Bihar
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