मेरी सोच Poem by Shashi Shekher Singh

मेरी सोच

मैंने आते जाते दिन किसी ना किसी को ये कहते हुए सुना है कि वो सिर्फ आगे बढ़ना जानते है, पीछे मुड़कर देखना उन्होंने कभी नही सीखा है।
आज हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति इसी धारणा के साथ पीछे मुड़कर ना देखते हुए बहुत ही तेज गति के साथ आगे बढ़ती चली जा रही है। और ऐसे ही पता नही हमलोग कब तक बिना सोचे बिना मुड़ते हुए बढ़ते जाएंगे।

अब वो समय आ गया है, जब हमलोगों को एकबार पीछे मुड़कर अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति को देखना चाहिए, हमे अपनी पुरानी संस्कृति को याद कर लेना चाहिए।
लोग कभी कभी हमें पुराने खयालात बाला बोल देते है, और सच मानिए हमे बुरा नही लगता इस बात का, हमको खुशी होती है, क्योंकि मुझे मेरे पुराने खयालात बेहद पसंद आते है और उसके कई कारण भी है।

वो भी क्या समय थे जब हमारे घर के बुजुर्ग, हमारे पिता, हमारी माता, हमारे गुरु उनलोगों को बस बोलना होता था और उनके बच्चे यानी हमलोग बिना सवाल उठाए उस काम को करते थे, पिताजी के सामने आने से संकोच होता था, वो जहा बैठते थे वहां हम बच्चे जाने से भी डरते थे।
आज तो बाप बेटे एक ही ग्लाश में शराब पीते है, एकदूसरे को गालियां भी देते है।
घर की महिलाएं पर्दे में होती थी, वो साड़ी की पल्लू आंखों तक, इसका ये मतलब नही था कि आप पर्दा रखिये आँखों तक बल्कि ये था कि आंखों में पर्दा रखिये, बड़े बुजुर्गों की इज्जत कीजिये।
हम किसी के कपड़ो पे कुछ बोलना नही चाहते, पर क्या करे, कल जो महिलाएं पर्दे में थी, आज बुजुर्गो के सामने अर्धनग्न होकर घूमती है।

मैं मानता हूं कि समय के साथ साथ आगे बढ़ो, पर आगे आने बाली बुराइयों को अपना कर नही, पीछे बाली अच्छाइयों को साथ लेके चलकर,
अगर आप अभी के समय को अच्छा मानते है, तो मैं दावे के साथ कह सकता हु की आपको अपनी सोच पर सोचने का समय निकालना होगा।
अगर अभी नही सोचोगे तो बहुत देर हो जाएगी, और वो समय दूर नही जब हमारी सभ्यता संस्कृति मिट्टी में मिलि हुई मिलेगी, और हमलोग एक अलग ही युग मे होंगे, जिसमे क्या होगा ये बस आप अंदाजा लगा सकते हो

अगर हमारी बाते खराब लगी हो तो क्षमा चाहता हु,
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🚩🚩जय श्री राम🚩🚩

मेरी सोच
Friday, July 20, 2018
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Shashi Shekher Singh

Shashi Shekher Singh

Lakhisarai, Bihar
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