dhirajkumar taksande Poems

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1.
जलाता है कोई

प्यारा नही फिर, दुलार देता है कोई
सासे जीवन की, मुझसे लेता है कोई

बाहो के घेरोसे लिपटता है कोई
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2.
तकदिर लिख दी

तराशकर पत्थरों की तकदिर लिख दी
गुलामी के खिलाफ बगावत की सीख दी
बरसो पडे पत्थरों की धुल हटाकर फुंक दी जान
भीमने बेजुबानो को जुबान और चीख दी
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3.
नुर जरा निखरा नही

आँख से अरमाँ भी सदियो से उतरा नही
कत्ल हो हररोज पर खून का कतरा नही
मुर्दो की तरह जिता हु सवारकर तकदिर जलता हु रोज पर मौत का खतरा नही
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4.
जागी हो

धर्मार्ंध विषमतेची,
होत आहेस तु कळी पुन्हा.
शिक्षणाच्या शस्त्राविणा,
जाइल तुझा बळी पुन्हा
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5.

डोळस, हातात काठी धराया लागले
कुंपने, शेतं बिनधास्त चराया लागले

जप करी मासे बगळ्यांच्या सत्संगी
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6.
इल्जाम न आए कोई

जाम चढाये कितना, अंजाम न आए कोई
होश बढाये कितना पैगाम न आए कोई
जुस्तजु हो गयी मजार दिले- बेकसी की
एक ताज और बनाता, मकाम न आए कोई
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7.
जगाचा पोशिंदा

शेतीच्या तासातासात जिंदगी मी पेरली
माझ्या घामातुन त्यांची गोदामं भरली
हुंकाराची रव माझी हवेतच विरली
व्यवस्थेन निर्धनांची सुखी स्वप्न चोरली
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8.
नशा

'तु माझ्या जगन्याचे आशय
जन्मजात हा तुझा वसा
तुझ्याच थेंबा थेंबां पासुन
जिवनास ह्या आधार जसा
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9.
जिंदगी

चलते चलते चल ना सकी
जिंदगी चलनेवाली
भरते भरते भर ना सकी
झोली मेरी खाली
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10.
भुल हो गयी

उजला तो सूरज है
अंधेरे का ईलाज हो जाए
और रोशन हो जाए आँखे अगर
तो फिर जहाँ भी जाए पुरब हो जाए
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