जिंदगी Poem by dhirajkumar taksande

जिंदगी

Rating: 5.0

चलते चलते चल ना सकी
जिंदगी चलनेवाली
भरते भरते भर ना सकी
झोली मेरी खाली

दुध पीता बच्चा नही हु
फिर भी चुस रहा हु
होठ गुलाबी मतवाली चाल
और गालो की लाली
भरते भरते भर ना सकी
झोली मेरी खाली

मजहब नही वो तेरे
करम देखता है
और सुलगते हालात पे
तरस खाता है माली
भरते भरते भर ना सकी
झोली मेरी खाली

मोहब्बत नही ये दिल्लगी है
दिल की तेरे
और बिगडते मौसमो मे
टुटती अक्सर प्याली
भरते भरते भर ना सकी
झोली मेरी खाली

चाहत नही है मिलन की
जन्मोसे लगी ये प्यास हैं
और कबसे खडा हुुँ;
दरपे तेरे बनके इक सवाली
भरते भरते भर ना सकी
झोली मेरी खाली

बाट नही पाया
मांगता रहा मै खाली
बोझ ढोती जिंदगी
बस कयामो वाली
भरते भरते भर ना सकी
झोली मेरी खाली

Sunday, September 7, 2014
Topic(s) of this poem: life
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