तकदिर लिख दी Poem by dhirajkumar taksande

तकदिर लिख दी

तराशकर पत्थरों की तकदिर लिख दी
गुलामी के खिलाफ बगावत की सीख दी
बरसो पडे पत्थरों की धुल हटाकर फुंक दी जान
भीमने बेजुबानो को जुबान और चीख दी

तरस गये थे अछुत काल के अंधियारे मे
भीमकी किरणो ने नयी सुबहे सादिक दी

इन्सानियत से देखे इन्सान इन्सान को
देश की कौम को संविधान की आँख दी

बुझ गया वो जिसने जलाये हजारो दिये
और सूरज मीट जाने तक की तारीख दी

Sunday, January 4, 2015
Topic(s) of this poem: human condition
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