धरती माता (The Earth) Poem by Laljee Thakur

धरती माता (The Earth)

धरती माता

तेरे जन्म की किसको जुबानी,
कैसे बनी तेरी अपनी कहानी,
क्योकि ये है अरबो बरस पुरानी,

और नहीं था तेरा कोई अपना,
सीधा-साधा तेरा सपना,
केवल था शीतल ग्रहाणु ही अपना,

तेरे जन्म की किसको जुबानी,
कैसे बनी तेरी अपनी कहानी,
क्योकि ये है अरबो बरस पुरानी,

थी प्रचुरता लोहा, सिलिकॉन और मैग्नीशियम के,
यूरेनियम, थोरियम और पोटेशियम भाई इनके,
आपस में टकराकर भाई तुम से भी टकराते थे,
आग बबूला होकर भाई ज्वाला ही उगला करते थे,

तेरे जन्म की किसको जुबानी,
कैसे बनी तेरी अपनी कहानी,
क्योकि ये है अरबो बरस पुरानी,

आपस में टकराकर भाई तुम्हे भी ज्वाला बना दिया,
करोडों बर्षो का सपना पल भर में पिघला दिया,
अपने को गुरुत्व के अधीन कर,
और फिर से संघनित होने दिया।

तेरे जन्म की किसको जुबानी,
कैसे बनी तेरी अपनी कहानी,
क्योकि ये है अरबो बरस पुरानी,

अपने को ज्वाला बना फिर लोहा को पिघला दिया,
बड़ा-बड़ा बूंद बना उसे अपने केंद्र में समां लिया।
हलके पदार्थो को निकाल कोड़ से सतह पर सजा डाली,
जलवाष्प और गैसों को भी बिना बक्से बहार क्यों कर डाली,

तेरे जन्म की किसको जुबानी,
कैसे बनी तेरी अपनी कहानी,
क्योकि ये है अरबो बरस पुरानी,

तुम्हारी क्रूरता देख गुरुत्वाकर्षण सतह पर सभी को बचाए रखा,
अल्प ताप घटाकर तुने घनघोर वर्षा कर डाली,
न जाने क्या सोच तुने विशाल समुद्र बना डाली|

तेरे जन्म की किसको जुबानी,
कैसे बनी तेरी अपनी कहानी,
क्योकि ये है अरबो बरस पुरानी,

शायद यही तुम सोचकर जलवाष्प को बाहर कर डाला,
कि कोई नहीं है इनमे जो जीवन का प्रादुर्भाव कर पाए,
विधुत विसर्जन देख तुमने जल्द ही अणु बना डाला,
वर्षा भी देख ये सब समुद्र तक उन्हें पहुंचा डाला,
समुद्र भी अब क्यों रुके झटपट ही प्राणी बना दिया,

तेरे जन्म की किसको जुबानी,
कैसे बनी तेरी अपनी कहानी,
क्योकि ये है अरबो बरस पुरानी,

ऑक्सीजन फिर सोच विचार ओजोन परत बना दिये,
ये ओजोन जीवो को निर्दयी विकरण से बचा दिये,

लालजी ठाकुर (दरभंगा बिहार) -

Tuesday, June 23, 2015
Topic(s) of this poem: environment
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