आँसूं गिरे कम से कम
मेरी आँखों से आँसूं गिरे कम से कम,
दो घडी को सुकून तो मिले कम से कम
दरमियाँ तो अना की ये दीवार है,
और अब मत बढ़ा फासले कम से कम,
वो शजर पर परिंदा मचलता रहा,
छोर दो उनके यह घोसले कम से कम,
तुम कभी भूल कर भी न आओ कभी,
याद रखना मगर रास्ते कम से कम,
यह सियाही नहीं अश्क आँखों के थे,
ख़त मेरा इक दफा खोलते कम से कम,
प्यार दुनिया में यारों बड़ी चीज है,
नफरतों से नहीं कुछ मिले कम से कम,
सच को कहने में कुछ भी बुराई नहीं,
आदमी झूट से बस बचे कम से कम,
चीर के दिल दिखाऊँ मैं क्यों आपको,
ज़ब्त के हैं बुलंद हौसले कम से कम,
लालजी ठाकुर
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem