आँसूं गिरे कम से कम Poem by Laljee Thakur

आँसूं गिरे कम से कम

आँसूं गिरे कम से कम

मेरी आँखों से आँसूं गिरे कम से कम,
दो घडी को सुकून तो मिले कम से कम

दरमियाँ तो अना की ये दीवार है,
और अब मत बढ़ा फासले कम से कम,

वो शजर पर परिंदा मचलता रहा,
छोर दो उनके यह घोसले कम से कम,

तुम कभी भूल कर भी न आओ कभी,
याद रखना मगर रास्ते कम से कम,

यह सियाही नहीं अश्क आँखों के थे,
ख़त मेरा इक दफा खोलते कम से कम,

प्यार दुनिया में यारों बड़ी चीज है,
नफरतों से नहीं कुछ मिले कम से कम,

सच को कहने में कुछ भी बुराई नहीं,
आदमी झूट से बस बचे कम से कम,

चीर के दिल दिखाऊँ मैं क्यों आपको,
ज़ब्त के हैं बुलंद हौसले कम से कम,

लालजी ठाकुर

Tuesday, March 15, 2016
Topic(s) of this poem: love and life
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Love
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Laljee Thakur

Laljee Thakur

Darbhanga
Close
Error Success