सांसों से साँसें, मिल बैठीं,
कुछ अपनी कही, कुछ अपनी सुनी,
हम दीवाने कितने हुए यूँ यार,
क्या हमने किया, हम क्या कर बैठे,
इक मस्त पवन का झोंका था,
जिसमें तुम - हम - तुम सिमट बैठे,
अब कोई नहीं है, हमको गिला,
जो कर बैठे, सो कर बैठे,
हमारे ही गुनाह लोगों ने गिने,
वो अपने गुनाह बुला बैठे,
हम पाक़ ही थे, सदा पाक़ रहे,
हम पाक़ हक़ीक़त, बन बैठे,
कहने दो दुनिया को बस, कहने दो,
हम पाक़ मोह्हबत कर बैठे,
क्या डरना अब इन, दुनिया वालों से,
हम ख़ुदा के पहलु मैं जब, जा बैठे,
निर्वान बब्बर
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem