भय क्यों है....... मृत्यु का (BHAYE KYON HAI..... MRITYU KA) Poem by Nirvaan Babbar

भय क्यों है....... मृत्यु का (BHAYE KYON HAI..... MRITYU KA)

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भय क्यों है, मृत्यु का, एक दिन तॊ प्रस्थान है,
वृक्ष सामान इस जीवन को, इक दिन सूख ही, जाना है, ये तो सूख ही जाएगा,

आत्मा थी अक्षय, अक्षय है आत्मा, आत्मा अक्षय ही रहेगी,
मूढ़ बुद्धि तू ना बन, ना प्रेम कर तू देह से,

मूल सदेव रहेगी आत्मा, फिर प्रेम क्यों है वृक्ष से,
बीज है परमात्मा, प्रेम कर तू बीज से,

देह, धन, और मैं क्या हैं, सब धरा रह जाएगा,
साथ तेरे बंधू मेरे, बस कर्म ही तो जाएगा,

आने वाली है प्रलय, कर बुद्धि का प्रयोग तू,
मान क्या इस देह का, ये तो मिटटी हो जाएगी,

निर्वान बब्बर

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