बे - अदब, लोग हम को मिलते है,
तोड़ देते है दिल पल ही पल मैं और कहते हैं, इश्क़ करते हैं,
बे - सबब, आज कल उदास रहते हैं,
लोग मिलते हैं तो, मिल के साथ हस्ते हैं, दिखाते हम के, हम खुश रहा करते हैं,
खोजते हैं, ना जाने किसे, गर्मी की, भरी दोपहरी मैं,
कोई जो पूछले हम से, क्यों ऐसा किया करते है, कुछ ना कहते हैं बस, ख़ामोश रहा करते हैं,
ख़ाक से उठते हुए शरारा हैं हम, हर लम्हा अपने आप मैं ही जला करते हैं,
बे- मुरवत और नफ़रत से भरे इस शहर मैं, एक हम ही हैं जो, इश्क़ मैं जला करते हैं,
निर्वान बब्बर
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Your poems are very interesting to read. Loved this poem very much.
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Thanks for the compliment......... Geetha Jayakumar