मेरा कश्मीर (Mera Kashmir) Poem by Nirvaan Babbar

मेरा कश्मीर (Mera Kashmir)

क्या मेरा वतन, मेरा कश्मीर नहीं था,
क्या मेरा अहम, मेरा कश्मीर नहीं था,
क्या मेरी जान, मेरा कश्मीर नहीं था,
क्या मेरा ज़हन, मेरा कश्मीर नहीं था,
क्या मेरा जिस्म, मेरी रूह, मेरा कश्मीर नहीं था,
क्या मेरा, मुझ मैं बाबस्ता, मेरा कश्मीर नहीं था,

ये जहाँ भी कैसा काफ़िर निकला,
जुदा कर दिया मुझे, मुझ से ही, क्या मेरी ' मैं ' मेरा कश्मीर नहीं था,
मुझसे ना पूछो के कश्मीर मेरे लिए क्या है,
मेरा कश्मीर, क्या मेरा कश्मीर नहीं था,
मेरी जन्नत को बना डाला, दोज़क जहाँ,
क्या मेरा कश्मीर, इस जहाँ कि जन्नत नहीं था,
छोड़ दिया ग़मज़दा हो कर मैंने अपना वो घर,
क्या मेरा वो घर, मेरे लिए, मेरा कश्मीर नहीं था,
ना जुदा करो मुझे, मेरे कश्मीर से,
क्या मेरी हर सांस मैं जो बसता है, वो क्या मेरा कश्मीर नहीं था,
मेरा कश्मीर मेरा था, और वो मेरा ही रहेगा,
जहाँ हो जाएगा फ़ना लेकिन,
मेरा कश्मीर था, मेरा कश्मीर है, सदा मेरा कश्मीर रहेगा,

निर्वान बब्बर

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INDIAN COPYRIGHT ACT,1957 ©

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