Paresa Dil Poem by GOVIND MUDGAL

Paresa Dil

मुझे तुम मार ही दो ना,
सब के सब ही अब मिलके,
फिर भी दिल ये धडकेगा तुम्हारा नाम ले ले के।
मुजको तेरी मुहब्बत ने कही का भी नही छोडा,
बददुवा भी निकलती है, फिर भी दुवा बनके।
जमाने से हो गया हूँ अब तो बेखबर ईतना,
की अपनो से भी मिलता हूँ
अब तो अजनबी बनकेँ।
बेवफा हो गया मुजसे ही मेरा दिल कमिना ये,
मुझे मजबुर करता है, उसीको याद कर कर के।
अ गोविन्द भूला देना वफा की झूँठी सब कसमे,
भला जीयेगा कैसे तू यूँही
घुट घुटके मर मर के।
G.N.M

Tuesday, August 12, 2014
Topic(s) of this poem: LOVE
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