Ek Raat De De Poem by GOVIND MUDGAL

Ek Raat De De

तू मुझे जीने के लिए ऐक रात तो दे दे,
मुहब्बत की कोई प्यारी सोगात तो दे दे।
तडफ रहा है बदन तन्हाई की तपिस मेँ,
तू शावन की कोई बरषात तो दे दे।
ले रही है अँगडाईयाँ दिल की आरजू,
तू कोई तो हँसी मुलाकात तो दे दे।
मै उलझा हूँ खुद अपने ही ख्यालोँ मेँ,
तू मेरी भावनाओ को अब जजबात तो दे दे।
G.N.M

Tuesday, August 12, 2014
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Akhtar Jawad 13 September 2014

Aapki yeh sunder kavita padhi jo bahut pasand aai.

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