Dil Ki Kasmkas Poem by GOVIND MUDGAL

Dil Ki Kasmkas

हाले दिल मुहब्बत का मै किसी को बता नही सकता,
है कितनी मुहब्बत तुमसे ये लब से जता नहीँ सकता।
और अब तो हाल है असा,
बिना परोँ के परिन्दोँ जैसा।
मै तुझे आषमाँ की तरहाँ घूर तो सकता है, पर चाहकर भी तुझे पा नही सकता।
G.N.M

Monday, August 11, 2014
Topic(s) of this poem: LOVE
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success