मैं चला जा रहा हूँ (Main Chala Jaa Raha Hu) Poem by Nirvaan Babbar

मैं चला जा रहा हूँ (Main Chala Jaa Raha Hu)

मैं चला जा रहा हूँ, बेकार, बे वजह,
आस्मां के पार शायद, मिल जाए एक जहाँ,

पर्बतों के रोएँ - रोएँ, चपे - चपे पे मेरे निशाँ,
वक़्त की बारिश भी, मिटा ना पाई ये ऐसे निशाँ,

कभी जो उड़ता एक लम्हा, आ जो जाए, मेरी तरफ,
तुषार की बूंदों मैं ढूंढे, वो अपनी ही दास्ताँ,

पाँव के तलों मैं छाले, लहू बहता जिनसे, बेशुमार है,
कहीं धूप है, ग़म की यारो, कहीं ग़म की ठंडी, छाँव है,

मेरी ज़मी का, तल है दलदल, ज़ख्मीं पग हम, कहाँ धरें,
लम्बें - लम्बें रास्तों पर, इस हाल मैं, कैसे चलें,
फिर भी चलना, हम को है यारो,
अब भी बचे हैं, ज़िन्दगी के, कई मरहले,
चलो यारों, चलो इनको भी जी लें,
इनसे भी रिश्ते, चलो अब निभालें,
कहीं ये भी ना रुठ जाएँ, ना करने लग जाएँ, ये भी गिले,
अब और किन - किन के शिकवे संभाले, किन किन के सहें हम, अब गिले,

निर्वान बब्बर

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Tuesday, April 15, 2014
Topic(s) of this poem: life
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