मैं कहूँ तो कहूँ क्या मेरी ज़िन्दगी (MAI KAHU TO KAHU KYA MERI ZINDAGI) Poem by Nirvaan Babbar

मैं कहूँ तो कहूँ क्या मेरी ज़िन्दगी (MAI KAHU TO KAHU KYA MERI ZINDAGI)

मैं कहूँ तो कहूँ क्या मेरी ज़िन्दगी,
अब तो खुशियाँ मेरी बन गई दास्ताँ,
अब तो हर इक नज़र गैर है ज़िन्दगी,
आग दिल मैं मेरे आज भी जल रही,

इश्क की राह मैं दिल जला हम जले,
तन तो तन है मेरा, फिर इस तन का भी क्या,
जो फ़ना होने की खातिर ही है बना,
तू भी हमको रोक सक्ती नहीं अब मेरी ज़िन्दगी,

हम मिलेंगे - मिलेंगे फिर कहीं ज़िन्दगी,
फिर मिलेंगे तो लिखेंगे नई दास्ताँ,
ये ज़माना है दोज़क, हमेशा से हमारे लिए,
हमको ज़माने की परवाह नहीं यार अब,

आग से दिल जला, मैं जला, तू जली,
राख बनके भी हम रहे फ़िज़ाओं मैं ही,
फिर से लोटेंगे हम लोटेंगे ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी हम तुम्हारे हैं तुम्हारे - तुम्हारे सदा,

निर्वान बब्बर

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