जुलूस-ए-ज़िंदगी Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

जुलूस-ए-ज़िंदगी

दो रास्ते हैं, ‘करना' और ‘होना'
जाओ कहीं, मगर, खयाले ‘जान' रखना

बड़ी कसरते हुई है, पाने में ‘जिंदगी'
खो जाए कहीं ना, सम्भाले ‘शान' रखना

काली स्याही से, बेअक़ल लिखते है
कोरे कागजो पे कोरा ही, ‘नाम' रखना

जितना उठा सको, उतना उठाओ बोझ
कभी ना किसी पे कोई ‘इल्जाम' रखना

फ़ना हो अगर हम, ‘उफ' ना निकाले
प्राणो में अपने कोई, ऐसा ‘ईनाम' रखना

लौट आ सके कभी भी, बसेरे पे अपने
तैयार हर समय पे, अपनी ‘म्यान' रखना

सपना-वपना किसी का, क्या पूरा करेंगे
जलूस-ए-जिंदगी में, बस तुम अपना ‘ध्यान' रखना

Tuesday, December 30, 2014
Topic(s) of this poem: meditation
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