कविता मेरी चेतना; मै वार दू तुम्हे Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

कविता मेरी चेतना; मै वार दू तुम्हे

कविता है हो जाना, कविता है खो जाना
कविता एक दिन नहीं, कविता है रोजाना
कविता तेरा मेरा, एक रूप एक दर्पण
कविता तेरे मेरे, दिल की एक धड़कन
कविता जीती-जागती, कायनात सारी
कविता लगने लगी मुझे, जान से भी प्यारी
कविता मेरी आरजू, क्या बताऊँ मैं तुम्हे
कविता मेरी चेतना, मैं वार दूं तुम्हे

कविता आस-पास है, कविता साथ-साथ है
कविता आती-जाती सांसो का अहसास है
कविता दिल में उठी, हूँई एक तरंग
कविता से ही जीता, गया जरा मरन
कविता गुणगाण है, तुझसे रिश्तेदारी
कविता लगने लगी मुझे, जान से भी प्यारी
कविता मेरी आबरू, क्या बताऊँ मैं तुम्हे
कविता मेरी चेतना, मैं वार दूं तुम्हे

कविता है अभी, कविता है यहीं
कविता है कही, कविता अनकही
कविता ऐसे जैसे, सुमिरन मेरा मन
कविता से ही पैदा, हूँआ है मलंग
कविता उपस्थिती है, तेरी मेरी यारी
कविता लगने लगी मुझे, जान से भी प्यारी
कविता मेरा प्यार है, क्या बताऊँ मैं तुम्हे
कविता मेरी चेतना, मैं वार दूं तुम्हे

(डॉ. रविपाल भारशंकर)

Tuesday, December 30, 2014
Topic(s) of this poem: poetry
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