नमुने है धरम Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

नमुने है धरम

किसीके सहारे नहीं,
जिंदगी, बीन तुम्हारे नहीं
बीच मझधार में; कूद जाते है जो,
सँवारे हैं; बारे नहीं

नज़र को नज़ारे नहीं,
दीवारे मना करती हैं
मुहब्बत में जो कुछ फिदा कर गये,
हवाले हैं, ताले नहीं

तु नज़र है मेरे सामने
मै चला हूँ तुझे थामने
तेरी कश्ती से जो भी; कना कर गये,
वो गँवारे, कुँवारे नहीं

नमूने हैं धरम
कहते हैं सिखाते अमन
एक दुजे के खुद ही ख़िलाफ हैं
इन्हे चैन आती नहीं

Tuesday, December 30, 2014
Topic(s) of this poem: meditation
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success