असली मज़ा Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

असली मज़ा

झूठ कहते है दुनियाँवाले कि वो जर्रे-जर्रे में है
मै तो कहता हुँ कि, जर्रा-जर्रा खुद उस में है

सुख-शांती कहा है किसी को पगार-पाणी में
असली मजा तो निचे से मिलनेवाली घूस में है

बचपना किसका चला गया जरा बताओ मुझको
असली मजा तो अब भी मिलता चूस में है

ताकतवर ऐसा न होगा जमाने में और कोई
असली मजा तो दिमाग चलाने का मूस में है

तुम भी कहाँ चले गए चीन में सर्कस देखने
असली मजा दीवाल देखने का कहा रूस में है

अमाँ यार, इलक्शन के बीना ठिक कैसे होगी बिमारी
असली मजा तो इलाज का झाड़फूस में है

Tuesday, December 30, 2014
Topic(s) of this poem: love
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