झूठ कहते है दुनियाँवाले कि वो जर्रे-जर्रे में है
मै तो कहता हुँ कि, जर्रा-जर्रा खुद उस में है
सुख-शांती कहा है किसी को पगार-पाणी में
असली मजा तो निचे से मिलनेवाली घूस में है
बचपना किसका चला गया जरा बताओ मुझको
असली मजा तो अब भी मिलता चूस में है
ताकतवर ऐसा न होगा जमाने में और कोई
असली मजा तो दिमाग चलाने का मूस में है
तुम भी कहाँ चले गए चीन में सर्कस देखने
असली मजा दीवाल देखने का कहा रूस में है
अमाँ यार, इलक्शन के बीना ठिक कैसे होगी बिमारी
असली मजा तो इलाज का झाड़फूस में है
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem