ये कैसा शहर है Poem by Aftab Alam

ये कैसा शहर है

Rating: 5.0

ये कैसा शहर है/आफ़ताब आलम 'दरवेश'

ये कैसा शहर है!
खामोश, खौफ़जदा,
सुनसान, वीरान
कब्रिस्तान सा.....
जिससे भी कुछ पूछा
न बोला, न सुना..
मेरे सवाल मेरे जिश्म के पार गया
मैं जीत कर भी हार गया//
मैं जिन्दा हूँ या एक एहसास हूँ
यह जानने के लिए मैं ने
उठाई है कलम....
अब कोरे कागजों को सुना कर
अपनी व्यथा..
पूछ्ता हूँ प्रश्न
ये कागज मुझ से बतियाते हैं..
अब जगी है उम्मीद
शायद ये शहर भी एक दिन...
सीचता हूँ इस डगर को
अपने लहू के नहर से
इस शहर की खातिर-
ये कैसा शहर है//

Sunday, September 21, 2014
Topic(s) of this poem: confusion
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Aftab Alam

Aftab Alam

RANCHI,
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