हमने सोचा हम मानव हैं, दानव सभी दिए हैं मार!
कभी न सोचा था, फिर होंगे कलयुगी दानव से दो-चार! !
भ्रस्टाचार, दहेज, आतंकवाद, ग़रीबी, होंगे नये दानव अवतार!
इनकी ताक़त हैं हम लोग, कौन इन्हे मारेगा आज! !
सोच रहे हैं सभी, फिर होगा राम-कृष्ण, गाँधी अवतार,
हम क्यों इतना सोचे जब, फिर आएगा तारनहार!
लेना-देना रीत आज की, इसको मत लो दिल पर आज,
भूख और बमो से मरना, अब तो छोटी- मोटी बात!
संस्कार की बात न करना, बची नही कोई औकात,
दौड़ रहें हैं सभी यहाँ, मद-माया के पीछे आज!
इक तिलिस्म मे फसे सभी हैं, सब को बस अपनी दरकार,
जब कुछ होगा उल्टा-सीधा, कोसेंगे अपनी सरकार!
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem