! ! आज के दानव! ! Poem by sunil shukla

! ! आज के दानव! !

हमने सोचा हम मानव हैं, दानव सभी दिए हैं मार!

कभी न सोचा था, फिर होंगे कलयुगी दानव से दो-चार! !



भ्रस्टाचार, दहेज, आतंकवाद, ग़रीबी, होंगे नये दानव अवतार!

इनकी ताक़त हैं हम लोग, कौन इन्हे मारेगा आज! !



सोच रहे हैं सभी, फिर होगा राम-कृष्ण, गाँधी अवतार,

हम क्यों इतना सोचे जब, फिर आएगा तारनहार!



लेना-देना रीत आज की, इसको मत लो दिल पर आज,

भूख और बमो से मरना, अब तो छोटी- मोटी बात!



संस्कार की बात न करना, बची नही कोई औकात,

दौड़ रहें हैं सभी यहाँ, मद-माया के पीछे आज!



इक तिलिस्म मे फसे सभी हैं, सब को बस अपनी दरकार,

जब कुछ होगा उल्टा-सीधा, कोसेंगे अपनी सरकार!

Thursday, August 20, 2015
Topic(s) of this poem: freedom
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sunil shukla

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Allahabad
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