ये परबत राज हिमालय है,
आँचल हिम का ओढे है ये,
दुर्गम उचाई जो इसमें है,
कहाँ, किधर और किस मैं है,
ऐ इंसान तू इस से सबक तो ले,
ताकि तू हर मुश्किल मैं अडिग रहे,
अडिग खड़ा रहता है ये,
ऐसी हिम्मत कहाँ जग मैं. जो निमिष मात्र इसे हिला भी दे,
तेज़ पवन के झोंकों से, बरखा के तीखे तेवर से भी,
विचलित ये कभी, हुआ नहीं,
ऐ इंसान तू इस से सबक तो ले,
ताकि तू हर मुश्किल मैं अडिग रहे,
सदियों से कई खड़ा है, सीना ताने हुए,
सर इसका कभी, झुका ही नहीं,
गॊद मैं अपने, कई जीवन लिए,
हर हाल मैं स्वयं को साबित किये, खड़ा है मीठी मुस्कान लिए,
ऐ इंसान तू इस से सबक तो ले,
ताकि तू हर मुश्किल मैं अडिग रहे,
निर्वान बब्बर
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