यार मलंगी Poem by Tarun Badghaiya

यार मलंगी

Rating: 5.0

यार मलंगी.....

दो यार मलंगी, वो। दिन सतरंगी
निकले ह घर से दो साथी संगी,
ना है रास्तों के खबर मुस्किलो का ये सफर
इस जमी से चुने गगन,
चल पड़े है बस दो मलंग
दो मलंगी, वो दिन सतरंगी........

मनमानियां गई मनमानियां,
करते चले है शैतानियां,
ख्वाबो को लेके अपने जेबों में,
महसूस करते आजदिया,
दो यार मलंगी, वो दिन सतरंगी.......

आपने खवाबों की कारवां में,
अपने मुस्किलो की दास्तां ह तू,
चल पड़ा ह तू हो हो,
चल पड़ा है तू।।
दो यार मलंगी, वो दिन सतरंगी
निकले है घर से, दो साथी संगी......

📖तरुण बड़घैया & मोहम्मद फ़ैज़✍️

Monday, November 5, 2018
Topic(s) of this poem: friendship
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This is story and song as well, tells a story about two stranger friends in the city
COMMENTS OF THE POEM
Naila Rais 24 December 2018

Love it......10.....thnx for sharing! ! ............. Friends are real jewels in life..... You may like to read my poems too..... Naila 👍

1 0 Reply
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