यार मलंगी.....
दो यार मलंगी, वो। दिन सतरंगी
निकले ह घर से दो साथी संगी,
ना है रास्तों के खबर मुस्किलो का ये सफर
इस जमी से चुने गगन,
चल पड़े है बस दो मलंग
दो मलंगी, वो दिन सतरंगी........
मनमानियां गई मनमानियां,
करते चले है शैतानियां,
ख्वाबो को लेके अपने जेबों में,
महसूस करते आजदिया,
दो यार मलंगी, वो दिन सतरंगी.......
आपने खवाबों की कारवां में,
अपने मुस्किलो की दास्तां ह तू,
चल पड़ा ह तू हो हो,
चल पड़ा है तू।।
दो यार मलंगी, वो दिन सतरंगी
निकले है घर से, दो साथी संगी......
📖तरुण बड़घैया & मोहम्मद फ़ैज़✍️
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