सोच
न जाने इतना बड़ा कब हो गया,
अभी तो तेरी उंगली पकड़ चला था इतने आगे हो गया।।
एक दिन था जब सपनो की फुहार आयी,
मैं सपनो के पीछे भागता रहा उसने मुझेअपनो ही दूर खिंच लायी।
बेगाना था, दुनिया से अनजाना था,
हृदय पर ठेस थी पर दुनिया का दस्तूर निभाना था।
ठग ठग के ठग रही वो मुझे दुनिया सी,
ख्वाबो के उसपार लग रही वो खूबसूरत मुनिया सी।।
पुड़िया रखी थी जेब में, भरी ख्वाबों से
आश थी थोड़ी हृदय की भूख मिट जाए शामों से।
तेरे लिए(ख्वाब)में सबको छोड़ लौट आया
वो भी (माँ)रोती रही मैं उसे भी छोड़ लौट आया।
एक ही गुजारिश है अब खुदा से,
परोस से थोड़ी सी खुशी या मझे फलसफा कर जाए।।
📖तरुण बड़घैया✍️
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