ग़ज़ल लिखने की कोशिश Poem by Tarun Badghaiya

ग़ज़ल लिखने की कोशिश

Rating: 5.0

आयी ऐसी शाम थी मैं मोम सा जल जल पिघल रहा था,
वो सजी थी दुल्हन सी, जी देखने को मचल रहा था।।
उसका रूप चाँद सा और यौवन चांदनी से बिखर रहा था,
वो चंचल _तरुण_काया सी, मेरे शब्र का बाण टूट रहा था।
मैं जलता रहा, वो जलाती रही आग सी,
मैं मचलता रहा, वो खेलती रही फाग सी,
अहनीश उसके यादों में, मैं अभीलाषा मेरा चिंगार से सुलगता रहा,
वो आकर्षण की देवी मानो, मैं दूत से अतप किंदरता रहा।।।
वो नटखटी उपद्रव सी, मैं नटवर मूर्ख सा जी उसे ही पाने को मचलता रहा, ||
मैं जलता रहा वो जलाती रही,
मैं पीरभरता रहा, वो खुरचाती रही।
बड़ा अहं है उसे अपने हुस्न पर,
में आलिंगन में आने तरसता रहा, ,
वो लज्जित कर मुझे टरकाती रही।।


✍️तरुण बड़घैया📖

ग़ज़ल लिखने की कोशिश
Monday, April 13, 2020
Topic(s) of this poem: love,love and dreams,love and life
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