कटाक्ष Poem by Tarun Badghaiya

कटाक्ष

सोच🤔


मैं तो मकरंद हूं, बबूल से भी रस ही लेता हूं।
शायद वो मक्खि है, फूल से भी गंदगी लेता है।।

मैं तो कमल सा हूं, पंक में रहता हूं ।

तू बादशाह होगा सियासतो का, फिर भी मैं तुझे रंक - जंक कहता हूं ।।।

📖तरुण बड़घैया ✍️

Wednesday, August 15, 2018
Topic(s) of this poem: love,love and life
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This is a thinking of an individual...
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