खुद जो पल गुज़ारे उसे ज़िदगी कहते हैं Poem by Talab ...

खुद जो पल गुज़ारे उसे ज़िदगी कहते हैं

खुद जो पल गुज़ारे उसे ज़िदगी कहते हैं
जी जी कर जो मारे उसे ज़िदगी कहते हैं

होता नहीं फर्क रंजिश और ख़ुशी में दोस्त
मिले है जिसमे सारे उसे ज़िदगी कहते हैं

वक़्त बिताया मसजिदों में हमने क्या कहिये
शीशा है जो प्यारे उसे ज़िदगी कहते हैं

बेमतलब हैं जीने मरने की बातें फरहाद
इश्क़ के मारे फिर उसे भी ज़िदगी कहते हैं

देखे थे हमने भी ख्वाब बेशुमार ज़िन्दगी में
रहा एक टूटे सारे उसे ज़िदगी कहते हैं

देखी कहाँ तूने जन्नत ओ दोज़ख वाईज
जहाँ हो अज़रो निकमत उसे ज़िदगी कहते हैं

सिवाए उसके तलब यहां कौन हुआ तेरा
तनहा से नज़ारे उन्हें ज़िंदगी कहते हैं

अज़रो निकमत = reward and punishment

Wednesday, April 5, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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