ये ज़िन्दगी का नया इक दौर सही
खुशियाँ तो नहीं गम और सही
छुपाए कहाँ छुपती है तिशनगी
पिलादे साक़ी इक जाम और सही
फिर मुड के देखो ऐ जान ए अदा
देखें हम इक महताब और सही
फिर ताँक्ति रही आने को नज़र
फिर तेरा बहाना कुछ और सही
ठहरी तुझपर जो ये गुस्ताक नज़र
इक मेरा मासूम गुनाह और सही
अब कैसा मेल कैसी ये जुदाई
फिर ये तन्हाईयाँ और सही
क्या गिला टूट गए दो चार तलब
फिर देखेंगे नए ख्वाब और सही
तिशनगी = Thirst
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