मैंने भी बादलों में कुछ कहा है Poem by Talab ...

मैंने भी बादलों में कुछ कहा है

मैंने भी बादलों में कुछ कहा है
शायद वो कहीं सुन रहा होगा

सन्नाटा ए अर्श से डरना कैसा
शायद वो भी गौर कर रहा होगा

पीठ थपाइ हिचकी पर साकी ने
शायद कोई याद कर रहा होगा

बेज़ुबान खड़ा है सामने मगर
मन ही में कुछ सोच रहा होगा

तुझसे बिछड़ कर वो परेशां तलब
खुद को शायद ढून्ढ रहा होगा

Wednesday, April 5, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success