तू खुदा है तो तेरे इख़्तियार में क्यूँ नहीं
सर मेरा दफ़्न आगोश ए यार में क्यूँ नहीं
राह बिखरे हुए काँटों का रोना कैसा
गिला ये कि दामन गुल ए गुलज़ार कयूं नहीं
इश्क़ में रफ्ता रफ्ता सीख लिया सब्र आखिर
फिर करें कुछ देर उनका इंतज़ार कयूं नहीं
नम आँखें कब से खुश्क हो कर रह गयी
फिर भी तुम कहो इस गम की सहर कयूं नहीं
एक दिल हमने रखा है संभालकर सीने में
तुझे देख धड़के गा हज़ार बार कयूं नहीं
जब अपना जी ही उठ गया इस जहां से तलब
बना लें हम इक सुनेहरा मज़ार क्यों नहीं
इख़्तियार= power, control
आगोश= lap, bosom
मज़ार = Tomb
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