राहों में गुज़रो तो नज़र फेरकर Poem by Talab ...

राहों में गुज़रो तो नज़र फेरकर

राहों में गुज़रो तो नज़र फेरकर
यूं ही मिला करो अंजान बनकर

दिल की कश्मकश जानोगे क्योंकर
आये हो तुम यहां मेहमान बनकर

हर ज़र्रे में शामिल हो तुम अगर
कभी हो नामुदार इंसान बनकर

बाँधा है तेरे ख्याल ने हमे वर्ना
हम भी तो दिखाते पहचान बनकर

ये मोजज़ा इश्क़ में देखा तलब
मिला हर मंज़र हमे शमशान बनकर

क्योंकर = How
नामुदार= Visible, apparent
मोजज़ा=Miracle
मंज़र = place

Tuesday, February 21, 2017
Topic(s) of this poem: life
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