वसीयत Poem by Kezia Kezia

वसीयत

Rating: 5.0

वसीयत लिख छोड़ी है,

सारे वादे तुम्हारे नाम कर दिए हैं।

सारे के सारे अपने सपने,

सारे दुःख सुख अपने।

कुछ टुकड़े तुम्हारी यादों के,

कुछ टुकड़े मेरी फरियादों के ।

एक टुकड़ा अपने अभिमान का,

एक टुकड़ा तुम्हारे अहंकार का।

एक शब्दों की जागीर है,

एक किस्मत की लकीर है।

छोड़े जा रही हूँ सब तुम्हारे लिए,

समेट रखा था अब तक जो हमारे लिए।

अपने सारे श्रृंगार,

तुम्हारे नाम कर चली हूँ।

अपनी सारी तकरार,

तुम्हे सौंप चली हूँ।

मन की तिजोरी में,

फेहरिस्त बना रखी है।

चाबी तुम्हारे मन की,

ओट में लटका रखी है।

वक़्त मिले तो,

उलट पलट कर देखना।

जीवनभर की पूँजी है।

इसे सहेज कर रखना।

***

Friday, September 25, 2020
Topic(s) of this poem: memories,sad love
COMMENTS OF THE POEM
Sharad Bhatia 25 September 2020

काश वसीयत ना होती तेरी मेरी मोहब्बत की दास्तान ना होती एक दर्द मोहब्बत का जो हमेशा रुलाता हैं बेहतरीन रचना एक बहुत बेहतरीन कवयित्री के द्वारा 1000 +

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Kezia Kezia 07 October 2020

kavita pasand karne ke liye bahut bahut shukriya Shriman. mohabbat aur dard ka rishta to atoot h.

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M Asim Nehal 25 September 2020

मुझे यकीं है वो जाने नहीं देंगे।।। शायद एक गीत भी गए ओ मनचली कहाँ चली देख देख....... कभी कभी दिल का ग़ुबार निकल ही जाये तो अच्छा है, ये प्यार के नोक झोक झोक बरक़रार रहे दुआ है हमारी आप दोनों का प्यार सदा सलामत रहे, बेहद उम्दा एहसास बहुत खूब है 10***

1 0 Reply
Kezia Kezia 07 October 2020

kavita pasand karne aur dher saari duaon ke liye bahut bahut dhanyawad Shriman. nok jhok to prem ka prateek hi h. iske bina prem adhura hi rahta h.

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Varsha M 25 September 2020

Bahut umda khayal. Saache ehsaas, saachi phariyaad. Bahut behtareen rachna. Dhanyawad.

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Kezia Kezia 07 October 2020

bahut bahut dhanyawad Varshaji

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