ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी (Zindagi Ae Zindagi) Poem by Nirvaan Babbar

ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी (Zindagi Ae Zindagi)

ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी, क़रार तुझ को कैसे मिले,
बेदाद से भरी ये दुनिया, इंसाफ तुझसे कैसे करे,

जन्नत मिले तो कैसे मिले जब, दोज़क जहाँ हमको लगे,
बज़्म कैसे निकले तो निकले, जब ये दिल ही दिल से जले,

हम से ना पूछो हाल अपना, ख़ुद को ही ख़ुद से हैं गिले,
ख़ाक से उठती ये हस्ती, आसमाँ कैसे छुए,

लुत्फ़ जीने का, कैसे उठायें, जब चार दिन ही हैं मिले,
क़त्ल होने से जो पहले, क़ातिल की बाहों मैं पले,

कसमें वादे कैसे निभाएं, ऐतबार ही, जब है ऐतबार से परे,
राज़ रखें दिल मैं कैसे, जब दिल को ही, हमसे शिकवे गिले,

बेदाद - नाइन्साफ़ी

निर्वान बब्बर

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