वक़्त कटता है यार (Waqt Katta Hai Yaar) Poem by Nirvaan Babbar

वक़्त कटता है यार (Waqt Katta Hai Yaar)

वक़्त कटता है यार, बहुत तेज़ी से,
यार अब ज़िन्दगी, कम हुई जाती है,

हालातों की धार भी है, तेज़ हुई,
धुप ज़ायदा और छाँव, ग़ुम हुई जाती है,

क्या करें वाद, किसी से मिलने का,
शहर मैं गैरों की भीड़, बड़ी जाती है,

आइना भी अक्स, अब सच का दिखता नहीं,
दोस्तों की फ़ितरत भी, दुश्मनों सी हुई जाती है,

हम तेरे नाम से ही मुक़मल थे कभी यारब,
आज तेरे होने से भी, अधूरे ही कहे जाते हैं,

निर्वान बब्बर

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