समज नहीं पाया-Samaj Nahi Paayaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

समज नहीं पाया-Samaj Nahi Paayaa

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समज नहीं पाया
रविवार, २७ जून २०२१

ना बन पाया में हवा का झोका
ना हो पाया किसीका आका
ना रोक पाया किसीका रुदन
बस सिहरन सी पैदा कर पाया वदन।

सीधा सादा इंसान बन पाया
सब को गले से लगाया
परायों को अपना बनाया
जो भी मिला उसे रामराम कर कर के बुलाया।

समज नहीं [पाया में उनके दिलों को
गले से लगाया सबको
अंदरू नी इच्छा जरूर से जाहिर की
अपना समझकर दिल की वेदना प्रकट भी की।

लोग भले ही केहते रहे
अपने मन को बहलाते रहे
ओर साथ मे झूठलाते भी रहे
बाते करते करते रोते भी रहे।

मेरे मन में संवेदना जरूर उठी
अंदर की आत्मा कराह उठी
मानवता के लिए दुहाई देती रही
अपने आप को सलाह देती रही

डॉ हसमुख मेहता
डॉ. साहित्यिकी

समज नहीं पाया-Samaj Nahi Paayaa
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
मानवता के लिए दुहाई देती रही अपने आप को सलाह देती रही डॉ हसमुख मेहता डॉ. साहित्यिकी
COMMENTS OF THE POEM

Sudhir Das.. welcome

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welcome.. Mohammed Arshad Amin

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Ada Steko Beautiful message, reading I felt the taste of salty tears and the helplessness that is born in such cases, I can do it WONDERFUL ⚘🍃⚘ · Reply · See original (Polish) · 10 m

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Ada Steko May be an image of text · Reply · 11 m

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welcoem. .Aida Aida

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Aida Aida

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Shabana Ali Rahil

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Eribeth Masa

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Indravadan Shah

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Leni Candiza

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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