कुदरत से ये हर बार हुआ (KUDRAT SE YE HAR BAAR HUA) Poem by Nirvaan Babbar

कुदरत से ये हर बार हुआ (KUDRAT SE YE HAR BAAR HUA)

आज फिर दुनिया की जीत हुई और किस्मत से मेरी हार हुई,
ऐ ज़िन्दगी ये इक बार नहीं, कुदरत से ये हर बार हुआ,

टूटा तार अम्बर से जो, धरती तक पहुँचकर ख़ाक हुआ,
ऐ ज़िन्दगी ये इक बार नहीं, कुदरत से ये हर बार हुआ,

धरती का समंदर सदा खारा रहा, हर मीठे पानी की बरसात मैं भी,
ऐ ज़िन्दगी ये इक बार नहीं, कुदरत से ये हर बार हुआ,

ज़मी दिल की बंजर रही बहार मैं भी, हर पल इसमें कई दरार रहीं,
ऐ ज़िन्दगी ये इक बार नहीं, कुदरत से ये हर बार हुआ,

धुंध सरे जहाँ की आ मेरी पलकों पर बैठी गई, नज़रें मेरी धुंध से हार गई,
ऐ ज़िन्दगी ये इक बार नहीं, कुदरत से ये हर बार हुआ,

मोह मैं बांध कर बेचारे हम, हर षण यहाँ लाचार हुए,
ऐ ज़िन्दगी ये इक बार नहीं, कुदरत से ये हर बार हुआ,

अनमोल प्रेम की है गाथा, लोगों के लिए बे - मोल हुई,
ऐ ज़िन्दगी ये इक बार नहीं, कुदरत से ये हर बार हुआ,

उज्वल ये संसार रहा पर, सीने मैं सदा अंधकार रहा,
ऐ ज़िन्दगी ये इक बार नहीं, कुदरत से ये हर बार हुआ,

निर्वान बब्बर

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
All my poems & writing works are registered under
INDIAN COPYRIGHT ACT,1957 ©
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success