कब तक तू रुलाएगी ऐ किस्मत (Kab Tak Tu Rulayegi Ae Kismat) Poem by Nirvaan Babbar

कब तक तू रुलाएगी ऐ किस्मत (Kab Tak Tu Rulayegi Ae Kismat)

कब तक तू रुलाएगी ऐ किस्मत,
ना उम्मीदी तू कब तक राहों मैं बिछाएगी,
अपने हाथों और माथे से मिटा दिया तुझको,
अब हमारी कारगुज़ारी ही हमारे काम आएगी,

जब सभी अपनों ने छोड़ दिया साथ अपना,
तो तू चीज़ क्या है जो हमारा साथ छोड़ जायेगी,
हमें जब फ़र्क़ नहीं पड़ता तेरे होने याँ ना होने से,
तो तू क्या हमारी, कारगुज़री को समझ पायेगी,

कब तक तू रुलाएगी ऐ किस्मत,
ना उम्मीदी तू कब तक राहों मैं बिछाएगी,

निर्वान बब्बर

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