चांदनी भी जाग रही है (Chandani Bhi Jaag Rahi Hai) Poem by Nirvaan Babbar

चांदनी भी जाग रही है (Chandani Bhi Jaag Rahi Hai)

आज लगता है के कहीं, चांदनी भी जाग रही है,
सितारों की पलकों पे, कहीं रात पड़ी है,

अल्लाह के इस जहाँ मैं, मोह्हबत कहीं जाग रही है,
जहाँ को इश्क़ के रंग से कहीं वो, रागरेज़ (ख़ुदा) रंग रहा है,

मसला दिल की धड़कन का, इक नया गीत रच रहा है,
वो इश्क़ के हर शिकवे को, कहीं साँसों से लिख रहा है,

इबादत की तरहां वो, इश्क़ की ग़ज़ल लिख रहा है,
वो ठंडी हवाओं के पहलु मैं, नया इतिहास रच रहा है,

ये पल छुटपन के खेल खिलवाड़ को, जवानी से ढक रहा है,
वो आने वाला तूफ़ान जैसे, इसी पल मैं घट रहा है,

निर्वान बब्बर

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